अमेरिका में क्रांति के बाद नए संविधान के अंतर्गत सन्न 1789 ईस्वी में पहली बार अमरीका में लोगों के वोट के द्वारा चुनाव (निर्वाचन) हुआ और जॉर्ज वॉशिंगटन को अमेरिका का प्रथम राष्ट्रपति तथा जॉन ऐडम्स को उपराष्ट्रपति चुना गया। शुरुआत में न्यूयॉर्क सिटी को सरकार की राजधानी घोषित किया गया और 1 अप्रैल को नए सदन का पहला बैठक/सम्मेलन हुआ। जॉर्ज वाशिंगटन राष्ट्रपति बनने के इच्छुक नहीं थे, वे राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते थे, किंतु मित्रों और जनता के कहने पर राष्ट्रपति बनने को तैयार हो गए।
जॉर्ज वाशिंगटन के सामने कई गंभीर समस्याएं उत्पन्न हुई थी अगर ऐसा था भी तो मार्गदर्शन के लिए 1789 का संविधान था, किंतु संविधान के द्वारा शासन की जो तस्वीर सामने उभर कर आई वह धुंधली तथा उसका पूर्ण विकास होना अभी बाकी था। केंद्रीय शासन की कोई पूर्ववर्ती परंपरा नही थी, अत: राष्ट्रपति और उसके सहयोगयों को हर विचार और दृष्टि से नई योजना एवं परंपरा के स्थापना करनी थी। परिसंघ ने उत्तराधिकार में राष्ट्रपति को असंतोष एवं वेतनविहीन लिपीक प्रदान किए थे देश में निराशा एवं ऋण की धुंध छाई हुई थी।
(परिसंघ = ऐसी राजनैतिक व्यवस्था जिसमे दो या उससे अधिक लगभग पूर्णत: स्वतंत्र राष्ट्र समझौता कर ले के बाकी विश्व के साथ वे एक ही राष्ट्र कि तरह संबंध रखेंगे। संघों की तुलना में परिसंघों के सदस्यों को अधिक स्वतंत्रता होती है।)
सैनिकों की संख्या अत्यंत कम हो जाने के कारण सैनिक दृष्टि से देश कमजोर हो चुका था, इंग्लैंड एवं स्पेन देश के पश्चिमी भाग को अलग कर परिसंघ को तोड़ना चाह रहे थे। प्रथम राष्ट्रपति के रूप में जॉर्ज वाशिंगटन को कार्यकारिणी के अधिकारियों का पद सोपान निर्धारित करना था नई नियुक्ति करनी थी तथा नई नीतियों एवं परंपराओं की आधारशिला रखने थी, इसके साथ ही सरकार के तीनों अंगों के बीच उपयुक्त संबंध एवं समन्वय स्थापित करना था।
वाशिंगटन के नीति एवं कार्य
कांग्रेस के राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति की नियुक्ति के बाद में सरकार ने जॉर्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में अपना कार्य प्रारंभ किया प्रारंभ में कांग्रेस ने तीन कार्यपालिका विभागों के स्थापना की विदेश राजकोष और युद्ध।
सर्वप्रथम जॉर्ज वाशिंगटन ने अपने मंत्रिमंडल का गठन किया, तथा अपने मित्रों एवं समर्थकों को उसमें उचित स्थान दिया। थॉमस जेफरसन (Thomas Jefferson) को वाशिंगटन ने विदेश मंत्री सेक्रेटरी ऑफ स्टेट नियुक्त किया, जॉर्ज वाशिंगटन ने न्यूयार्क के अलेक्जेंडर हैमिल्टन (Alexander Hamilton) को वित्तमंत्री ( secretary of treasury) के पद पर नियुक्त किया गया। मान्य नेता एवं क्रांतिकाल वीर सिपाही जनरल हेनरी नॉक्स ( general Henry KNOX) युद्ध सचिव (सेक्रेटरी ऑफ वार) नियुक्त किया गया।
एडमंड रंडोल्फ (Edmund Rendolph) को अमेरिका का प्रथम अटर्नी जनरल बनाया गया, यद्यपि अटॉर्नी जनरल मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं था। तथापि कार्यपालिका के कानूनी सलाहकार के रूप में वह इसकी बैठको में उपस्थिति रहता था।
वस्तुत: अमेरिकी संविधान द्वारा मंत्रिमंडल की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी, किंतु जॉर्ज वाशिंगटन सदा कोई निर्णय लेने के पहले अपने सहयोगियों से परामर्श लेता था। जिस तरह जॉर्ज वाशिंगटन प्रथम की अंग्रेजी भाषा की अज्ञानता और इंग्लैंड की राजनीति के प्रति उसके उदासीनता ने कैबिनेट प्रथा के विकास को प्रोत्साहन दिया, ठीक उसी प्रकार जॉर्ज वाशिंगटन की शासन कार्य की अनुभवहीनता ने संयुक्त राज्य अमेरिका में इस प्रथा को जन्म दिया। मंत्रिमंडल के सदस्य ना तो कांग्रेस के सदस्य होते थे और न ही प्रत्यक्ष रूप से उसके प्रति उत्तरदायी थे।
जॉर्ज वाशिंगटन अपने शासनकाल में ना केवल मंत्रिमंडल बल्कि समय-समय पर दूसरे योग्य एवं लोकप्रिय लोगों से भी परामर्श किया करते थे।
न्याय विभाग का संगठन (organisation of judiciary department)
कैबिनेट के गठन के बाद न्याय विभाग का संगठन किया गया, संविधान में न्यायालय के संस्थापन के संबंध में कांग्रेस को विस्तृत अधिकार प्रदान किए गए। उसे ही निम्न स्तर के नियमों की स्थापना एवं उनकी रूपरेखा निर्धारित करने का अधिकार मिला, सितंबर 1788 ईस्वी को प्रथम न्यायपालिका अधिनियम (judiciary act) पारित किया गया। इसके द्वारा एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश और 5 सहायक न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई। 13 जिला न्यायालय की स्थापना की गई।
प्रत्येक न्यायालय के लिए एक जज की व्यवस्था की गई, सर्वोच्च न्यायालय और जिला न्यायालय के बीच में तीन सर्किट कोर्ट (उत्तर दक्षिण एवं मध्य) की व्यवस्था की गई। इन सर्किट न्यायालय के दो इजलास प्रतिवर्ष सर्किट के अंतर्गत जिलों में करने की व्यवस्था की गई। प्रत्येक सर्किट कोर्ट में दो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश तथा उनकी सहायता के लिए जिला न्यायाधीश की भी व्यवस्था की गई। 1789 ईस्वी के न्यायिक अधिनियम का
एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान यह था कि संघीय न्यायालय को किसी विधि की संवैधानिकता के प्रश्नों पर राज्य न्यायालयों के निर्णय को पुनरीक्षण (Review) करने का अधिकार दिया गया। इस प्रकार इस प्रावधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को अमेरिकी संविधान का संरक्षक मान लिया गया। जॉर्ज वाशिंगटन ने सर्वोच्च न्यायालय के पदाधिकारियों की नियुक्ति में अपने बुद्धिमता का परिचय दिया तथा उसने न्यूयॉर्क के जॉन जे को मुख्य न्यायाधीश तथा जेम्स विल्सन, जॉन रटलेज एवं जॉन ब्लेयर को सहायक न्यायाधीश के पदों पर नियुक्त किया गया।
जॉर्ज वाशिंगटन प्रशासन की आर्थिक नीति
जॉर्ज वाशिंगटन प्रशासन की आर्थिक नीति का संचालन वित्त मंत्री के रूप में हैमिल्टन ने किया, राजनीतिक समस्याओं के साथ-साथ देश के सामने गंभीर आर्थिक समस्याएं थी। सबसे बड़ी समस्या राष्ट्र के समक्ष धन के अभाव की थी, कोष रिक्त था, राष्ट्रीय ऋण दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था और आय के साधन अभी निश्चित नहीं हुए थे। नए शासन का कार्य करना धन के अभाव में असंभव था। हैमिल्टन ने अपना वित्तीय कार्यक्रम 1790 ईसवी और 1791 ईसवी के मध्य कांग्रेस के सम्मुख विभिन्न प्रतिवेदनों में प्रस्तुत किया।
हैमिल्टन के आर्थिक नीति का प्रमुख उद्देश्य व्यापारियों उद्योगपतियों तथा पूंजीपतियों को अपनी और आकर्षित कर सरकार में उनका विश्वास बढ़ाना तथा उनका समर्थन प्राप्त करना था। उसने साधारण जनता के हितों की उपेक्षा की उसने अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित कदम उठाएं –
इस प्रकार यद्यपि हैमिल्टन की आर्थिक नीति व्यापारियों एवं पूंजीपतियों के हित में ना थी, तथापि इसने राष्ट्र का भला किया। अमेरिकी बांड विदेशों में दिखे और लाभ निवेशकर्ताओं को प्राप्त हुआ राष्ट्रीय बैंक का कार्यक्रम विकास के लिए अत्यंत उपयोगी रहा।
राजनीतिक दलों का उदय
राजनीतिक दलों के संबंध में अमेरिकी संविधान मौन था, क्योंकि राजनीतिक दलों के संबंध में अमेरिकियों की धारणा अच्छी नहीं थी। किंतु हैमिल्टन का वित्तीय कार्यक्रम दलप्रथा (party system) को प्रोत्साहित करने में सहायक बना। विविध आदर्शों एवं आर्थिक हितों के कारण दो विरोधी समूह का जन्म हुआ, हैमिल्टन तथा उसके समर्थकों को संघवादी (federalist) की संज्ञा दी गई। जबकि उसके विरोधी जेफरसन तथा उसके अनुयाई गणतंत्रवादी (republicans) कहलाये।
जेफरसन तथा मेडिसन के राजनीतिक विचारों में समानता थी जैफरन किसानों का पक्षधर था वह चाहता था कि किसानों की समुचित शिक्षा दीक्षा का प्रबंध करके उन्हें उत्तम तथा श्रेष्ठ नागरिक बनाया जाए। यही कारण है कि दक्षिण तथा पश्चिम के ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश लोग गणतंत्रवादी (republicans) कहलाये। हैमिल्टन व्यापारियों पूंजीपतियों एवं उद्योगपतियों का पक्षधार था। उसकी नीतियों ने किसानों तथा भवनों के मालिकों की अपेक्षा व्यापारियों और उत्पादकों को अधिक लाभान्वित किया।
इसलिए इनका समर्थन कृषि प्रधान दक्षिण की अपेक्षा उत्तरी राज्यों ने किया, इसलिए उत्तर पश्चिम के वाणिज्य केंद्रों के अधिकांश लोग संघवादी (federalist) कहलाये। दोनों दलों में राजनीतिक तथा आर्थिक मतभेदों के अतिरिक्त सैद्धांतिक अंतर भी था। इंग्लैंड में टोरी और ह्विग दल के बीच ना केवल द्वंद और ईर्ष्या ही थी, बल्कि वे एक दूसरे को घृणा की दृष्टि से भी देखते थे। और एक दूसरे के प्रति अपमानजनक शब्दों का भी प्रयोग करते थे।
इस प्रकार दोनों दलों का संगठन 1971 ईस्वी में हो गया, कांग्रेस तथा राज्य व्यवस्थापिका के सदस्य किसी एक दल के साथ संबंध हो गए। दोनों के अलग-अलग समाचार पत्र तथा पत्रिकाएं निकलने लगी, तथा सारा राज्य दो समूह में विभक्त हो गया। यद्यपि जॉर्ज वाशिंगटन की सहानुभूति संघवादियों के साथ थी यद्यपि वह नहीं चाहता था कि सरकार पर किसी भी एक दल का नियंत्रण रहे। इसलिए उसने दोनों महापुरुषों को अपने मंत्रिमंडल में रखा, जॉर्ज वाशिंगटन को जेफरसन और हैमिल्टन दोनों का समर्थन और सहयोग प्राप्त था।
1792 इसमें में जेफरसन और हैमिल्टन दोनों ने जॉर्ज वाशिंगटन से राष्ट्रपति पद पर बने रहने का आग्रह किया। क्योंकि दोनों पक्षों की स्थिति अस्थिर थी और देश में अराजकता फैलाने की आशंका थी। अत: दोनों पक्षों के सहयोग से जॉर्ज वाशिंगटन 1792 ईस्वी में दूसरी बार भी राष्ट्रपति चुन गए।
1792 ईसवी के पश्चात जॉर्ज वॉशिंगटन को कतिपय घरेलू समस्या का सामना करना पड़ा, पश्चिमी मैसाचुसेट्स के किसानों के विद्रोह के रूप में नई सरकार के समक्ष प्रथम गंभीर समस्या उत्पन्न हुई। किसान केंटकी, वरमौंट तथा हेनेसी संघ से पृथक होना चाहते थे। दूसरी ओर जॉर्ज वाशिंगटन की सरकार राष्ट्रीय एकता और अखंडता स्थापित करने के लिए कृतसंकल्प थी। 1794 ईस्वी में पेंसिलवेनिया के किसानों ने ह्विसकी उत्पाद कर (excise duty) देने से इनकार कर दिया।
हैमिल्टन के अनुरोध पर जॉर्ज वाशिंगटन ने 3 राज्यों की सेना बुलाकर 15000 सैनिकों की एक टुकड़ी को उन्हें दबाने के लिए वहां रवाना किया। वह स्वयं सैनिकों के साथ बेडफोर्ड शहर तक गया, वाशिंगटन के इस कड़े रुख के कारण विद्रोहियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। यह ह्विसकी आंदोलन तो किसी तरह शांत हो गया, परंतु पश्चिमी सीमा में निवास करने वाले अमेरिकिनो ने अपनी जबरदस्ती से एक और जटिल समस्या पैदा कर दी। भूमिक्षुधा की तृप्ति ने उन्हें अपने पड़ोसी आदिवासियों से उनकी भूमि बलात् छिनने के लिए प्रेरित किया।
इस अत्याचार के विरुद्ध आदिवासियों ने विद्रोह कर दिया और जनरल क्लेअर की सेना को परास्त कर भारी क्षति पहुंचाई। अंत में 1794 में जनरल वेन ( general Wayne) ने उनको परास्त कर आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य कर दिया तथा आदिवासियों ने अगस्त 1795 चैन में ग्रिनविले की संधि पर हस्ताक्षर किया।
वाशिंगटन की विदेश नीति
जिस समय संयुक्त राज्य अमेरिका निर्माण के मार्ग पर आगे बढ़ रहा था, उस समय अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति में तेजी से परिवर्तन हुआ। अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में आए परिवर्तन ने अमरीका के समक्ष वैदेशिक नीति निर्माण का प्रश्न एक बड़ी समस्या के रूप में उपस्थित कर दिया। संयुक्त राज्य अभी नवजात राष्ट्रीय था, वह तो शांति का इच्छुक था और अंतरराष्ट्रीय झंझटो से पृथक रखकर उन्नति करना चाहता था। परंतु विश्व की राजनीति का एक अंग होने के कारण अमेरिका अंतरराष्ट्रीय घटनाओं से विमुख नहीं रह सकता था।
उसका संपर्क 3 यूरोपीय राष्ट्रों फ्रांस, इंग्लैंड तथा स्पेन से था, अतः इन्हीं के प्रति उसे अपने वैदेशिक नीति का निर्धारण करना था।
जॉर्ज वाशिंगटन का फ्रांस के साथ संबंध
जिस वर्ष जॉर्ज वाशिंगटन अमेरिका का राष्ट्रपति बना उसी वर्ष फ्रांस में 1789 ईसवी की क्रांति भड़क उठी, अमेरिकी राजनीति पर फ्रांस के क्रांति के गहरा प्रभाव पड़ा। रिपब्लिकनो ने फ्रांस की क्रांति का स्वागत किया और उसको स्वतंत्रता प्राप्ति का आंदोलन बतलाया। फेडरलिस्टो ने पेरिस के दंगाइयों के अत्याचारों और आतंकपूर्ण शासन (reign of terror) को हिंसा और अनियंत्रित अराजकता का घोतक माना।
इसी समय फ्रांस के सम्राट लुई सोलहवें की क्रांतिकारियों द्वारा हत्या कर दी गई, जिसके परिणाम स्वरूप ग्रेट ब्रिटेन और उसके मित्रों ने फ्रांस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। अब प्रश्न यह थी कि क्या 1778 ईस्वी में किस संधि के द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका फ्रांस को युद्ध में साथ देने के लिए वाध्य था या नहीं। हैमिल्टन एवं जेफरसन दोनों ने इस संघर्ष संघर्ष में जॉर्ज वाशिंगटन को तटस्थाता की नीति अपनाने को कहा। वाशिंगटन ने फ्रांसीसी सरकार को मान्यता देने और शांति उद्घोषणा जारी करने का निश्चित किया।
अतः 23 अप्रैल 1793 को जॉर्ज वाशिंगटन एक घोषणा पत्र प्रकाशित किया जिसके द्वारा अपने देशवासियों को युद्ध में भाग लेने की मनाही कर दी। इस प्रकार अमेरिका ने अपनी तटस्थता की घोषणा की, साथी जॉर्ज वाशिंगटन ने फ्रांसीसी राजदूत जेनेट (Edmond charks Janet) का विधिवत स्वागत करने का भी निश्चय किया। परंतु फ्रांस के राजदूत के रूप में जेनेट ने कुछ अप्रिय कार्य किए। उसने जानबूझकर जॉर्ज वाशिंगटन का अनादर किया और अमेरिकी तटस्था अधिनियम की अवहेलना की।
उसके आचरण से जॉर्ज वाशिंगटन और संघवादी रुष्ट हो गए और जॉर्ज वाशिंगटन ने फ्रांसीसी सरकार से जैनेट को वापस बुलाने का अनुरोध किया।
जॉर्ज वाशिंगटन इंग्लैंड के साथ संबंध –
अनेक कारणों से संयुक्त राज्य अमेरिका और इंग्लैंड के संबंध खराब हो गए थे, अमेरिकी तटस्थता को सर्वप्रथम चुनौती ब्रिटेन के द्वारा दी गई। पश्चिमी क्षेत्र में उसने वर्षों से चौकियां खाली नहीं की थी, कैनेडियन व्यापारी (अंग्रेज) आदिवासियों को संघीय सरकार के विरुद्ध सदा भड़काते रहते थे। फ्रांस के साथ युद्ध चल जाने के कारण ब्रिटेन अपने हित में तटस्थ राष्ट्रों के अधिकारों को पददलित कर रहा था। ब्रिटेन के जंगी जहाजों ने संयुक्त राज्य अमेरिका के किस पोस्ट पौधों को अधिकृत करके उनके यात्रियों को परेशान किया था।
और उन पर अत्याचार किए थे ब्रिटेन के इस कार्य से अमेरिका व्यापार को बहुत हानि पहुंची थी, इसके अतिरिक्त उन नाविकों को भी पकड़ लेते थे जो यद्यपि जाति से तो अंग्रेज थे पर वे वास्तव में अमेरिकी नागरिक होते थे। उपयुक्त कारणों से अमेरिका का ब्रिटेन के साथ विरोध बढ़ा, ब्रिटेन ने अमेरिका की आपत्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया और दोनों के संबंध इतने खराब हो गई कि 1794 ईसवी के बसंत में भयंकर युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई।
किंतु जॉर्ज वाशिंगटन युद्ध नहीं समझौता चाहता था क्योंकि इस समय विनाशकारी युद्ध अमेरिका के लिए घातक सिद्ध हो सकता था। फेडरलिस्टों ने क्रांतिकारी फ्रांस के भय तथा अन्य आर्थिक कारणों से जॉर्ज वाशिंगटन की नीति का समर्थन किया। जॉर्ज वाशिंगटन ने मुख्य न्यायाधीश जॉन जे (John Jay) को विरोध राजनायिक बनाकर ब्रिटेन भेजा। जॉन जे ने 1794 ईसवी में ब्रिटेन से एक संधि की इस संधि के मुख्य बातें निम्नलिखित थी –
स्पष्ट है कि यह संधि एकपक्षीय थी, अमेरिकन इससे असंतुष्ट ही नहीं क्रोधित वे थे, रिपब्लिकनों ने इस की कटु आलोचना की और जॉन जे को इसके लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदाई ठहराया गया। Prof. H.B. Parks के मतानुसार या संधि संयुक्त राज्य अमेरिका की राजनयिक हार थी। वाशिंगटन ने इसे कराह कर स्वीकार किया। क्योंकि वह ब्रिटेन के साथ युद्ध नहीं चाहता था, उसने युद्ध की अपेक्षा इस संधि को सर्वश्रेष्ठ बताया और उसकी सिफारिश पर सीनेट ने इसको मंजूर किया। इतिहासकारों का मत है कि वाशिंगटन का या कार्य बुद्धिमतापूर्ण था।
जॉर्ज वाशिंगटन का स्पेन के साथ संबंध
अमेरिका ने ब्रिटेन के साथ जो संधि (Jay’s Treaty) की उसके फल स्वरुप स्पेन को चिंता होने लगी कि अमेरिका उसके भीतर अमरीकी स्पेनी प्रदेशों (उपनिवेशो) को अपने अधिकार में ले सकता है। अब वह ब्रिटेन का साथ छोड़कर फ्रांस के साथ हो जाना चाहता था, वह चाहता था कि स्पेन के हित में संयुक्त राज्य अमेरिका को सब छूट देकर संतुष्ट किया जाए। अतः 1795 ईसवी में थॉमस पिंकिनी (Thomas Pinckney) ने हस्बैंड के साथ संधि की जिसे पिंकनी संधि (Treaty of Pinckney) कहां गया। इस संधि की प्रमुख शर्तें इस प्रकार थी –
यह संधि अमेरिकी वैदेशिक नीति की एक बड़ी सफलता थी, लंदन में अमेरिकी राजनयिक असफलता की भरपाई मेड्रिड में सफलता द्वारा हुई। इस प्रकार जॉर्ज वाशिंगटन अपने राष्ट्रपति पक्ष का दूसरा कार्यकाल पूर्ण करने के पूर्व ग्रेट ब्रिटेन तथा स्पेन से अपने मतभेदों को दूर करने में सफल हुआ।
इस प्रकार 8 वर्षों तक जॉर्ज वाशिंगटन अमेरिका का सर्वमान्य बना रहा, उसने असीम धैर्य एवं बुद्धिमता से देश की सभी समस्याओं का सामना किया और बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से उसने उनका निदान किया। वह सादगी और गंभीरता की प्रतिमूर्ति था, उसने बड़े कौशल से अपने मंत्रिमंडल में जेफरसन और हेमिल्टन जैसे परस्पर विरोधी विचारों वालों को रखा। उसने उनकी योग्यता एवं प्रतिभा का राष्ट्रहित में पूरा-पूरा प्रयोग किया,
उसने अपने राष्ट्र को अनेक कठिनाइयों से बचाया उसको सुदृढ़ किया और शासन की प्रारंभिक रूपरेखा तैयार की। वह अमेरिका का राष्ट्रपति था अमेरिका के इतिहास में उसका स्थान बहुत ऊंचा है।
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