झारखंड में 1857 की क्रांति की शुरुआत कब और कैसे शुरू हुई?
झारखण्ड में 1857 ई. पर एक टिप्पणी लिखें, Write a note on Revolt of 1857
1857 की क्रांति का दूसरा नाम क्या था?
सन् 1857 ई. का वर्ष झारखण्ड के इतिहास का एक महत्तवपूर्ण खंड रहा है। सन् 1857 ईस्वी की क्रांति की चिंगारी छोटानागपुर तक पहुँची और वहाँ के निवासियों ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध इस विद्रोह में शामिल होकर अपनी राष्ट्रीयता का परिचय वा उदाहरण दिया। सन् 1857 ई. के पहले भी कम्पनी सरकार को यहाँ अनेक विद्रोहों का सामना करना पड़ा था। किन्तु यहाँ के लोगों ने कभी भी बेवजह किसी कारण अथवा बिना किसी शिकायत के सरकार का विशेष विरोध नहीं किया था। छोटानागपुर में प्रायः सभी विद्रोह स्थानीय लोगों के प्रति सरकारी अधिकारियों के द्वेष (विरोध) एवं अन्यायपूर्ण दृष्टिकोण के कारण हुए थे।
इस प्रकार सन् 1857 ई. के आन्दोलन में छोटानागपुर के लोग अपनी वास्तविक शिकायतों को मुखरित करने के लिए शामिल हुए थे।
जिस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर सन् 1857 ई. की क्रांति ब्रिटिश विरोधी थी। उसी प्रकार छोटानागपुर में भी इसका स्वरूप सरकार विरोधी था। साथ ही छोटानागपुर में इस क्रांति के कुछ स्थानीय कारण भी थे, जो इसे विशिष्ट निजी स्वरूप प्रदान करते थे।
झारखंड में 1857 की क्रांति का मुख्य कारण क्या था?
छोटानागपुर के निवासियों में कम्पनी सरकार के विरुद्ध असंतोष था, अंग्रेजों को इस क्षेत्र में आगमन के साथ ही प्रारम्भ हो गया था। छोटानांगपुर पर अंग्रेजों की पकड़ मजबूत होने के साथ साथ यहाँ के राजाओं समांतों और जमीन्दारों (पलामू के चेरो, छोटानागपुर के नागवंश शासको, सिंहभूमि के सिंह राजाओं, तथा अन्य छोटे शासकों) की स्थिति दिन प्रतिदिन कमजोर पड़ती जा रही थी। इन हताश शासकों के मन में अंग्रेजों को यहाँ से मार भगाने की इच्छा बलवती (अत्यंत प्रबल) होने लगी।
अंग्रेजों ने छोटानागपुर को निर्वासन (बलपूर्वक किसी को किसी राज्य या भू-भाग से निकालना) भूमि में परिवर्तित कर दिया था और भारत के विभिन्न भागों के अंग्रेज विरोधी शासकों को अंग्रेजों ने राजा के तौर पर छोटानागपुर में निर्वासित (जो किसी राज्य या भू-भाग से निकाल दिया गया हो) कर दिया था। स्वभावत: इससे छोटानागपुर में क्रांति की चिंगारी उत्पन्न होनी शुरु हुई। छोटानागपुर के लोग अंग्रेजों से इसलिए भी निराश थे क्योंकि वे सभी प्रशासक जो थे सभी बाहरी लोग थे। सामान्यतः बंगाली और बिहारी जिनको स्थानीय लोग नापंसद करते थे। कुछ जागीरदार इसलिए भी नराज थे कि अंग्रेजों ने उनकी सेवाओं के लिए उन्हें पुरस्कृत नहीं किया।
स्वाभाविक था छोटानागपुर के भूतपूर्व शासक घरानों के लोगों ने अपनी प्रजा के साथ मिलकर सन् 1857 ई. की क्रांति के रूप में सरकार के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त किया।
आर्थिक कारण : राजनीतिक कारणों के साथ -साथ क्रांति के कतिपय आर्थिक कारण भी थे। कम्पनी ने स्थानीय जागीरदाों के अनेक विशेषाधिकार को समाप्त कर दिया था। अनेक छोटे जमीन्दार और जागीरदार सरकार की आर्थिक नीति के कारण विपन्न (विपत्ति में पड़ा हुआ, संकटग्रस्त) हो गये थे। अतः उनमें से अनेक अपनी खोयी हुई समृद्धि को पुनः प्राप्त करने के लिए इस क्रांति में शामिल हो गए। छोटानागपुर ब्रिटिश शासन तंत्र की अपर्याप्ता (कुछ प्राप्त न होना) ने भी यहाँ के लोगों को 1857 ई. की क्रांति में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। कम्पनी सरकार के पदाधिकारी स्थानीय जनता की उपेक्षा (तिरस्कार, निरादर, अवहेलना) करते थे।
1857 ई. के पूर्व के विद्रोहों के अंग्रेज़ों ने बड़े अमानुषिक (अमानवीय) ढंग से कुचला था। जिसकी स्मृति लोगों के दिलों दिमाग में अभी भी ताजी बनी हुई थी।
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त छोटानागपुर के विद्रोह पर बिहार के विद्रोह का भी प्रभाव पड़ा। अतः प्रधानत: क्षेत्रीय होते हुए भी यहाँ की क्रॉंति कोई पृथक प्रतिक्रिया नहीं थी। वस्तुतः अपने व्यापक रूप में यहां क्रांति पटना तथो शाहबाद की क्रांति से जुड़ी हुई थी। दानापुर के सैनिकों में विद्रोह एवं शाहबाद के बाबू कुंवर सिंह के विद्रोह के सूचना मिलने पर हजारीबाग, रांची, चाईबासा तथा पुरुलिया स्थित सैनिको ने विद्रोह का झंडा लहराया था। स्मरणीय यह है कि विद्रोह के अंतिम क्षणों में भी पलामू के लोग शाहबाद से सशत्त्रसहायता पाने की चेष्टा करते रहे थे।
झारखंड में 1857 क्रांति का स्वरूप
तात्कालीन अंग्रेज अधिकारियों ने यह सिद्ध करने की चेष्टा’ की है कि छोटानागपुर 1857 ई. का आन्दोलन कुछ असंतुष्ट जमीन्दारों का घड्यंत्र मात्र था न कि छोटानागपुरियों का राष्ट्रीय युद्ध। बंगाल के लेफ्टिनेंट गर्वनर फ्रेडरिक हैली डे के अनुसार जिन लोगों ने विद्रोहियों का साथ दिया वे न तो उन लोगों के सगे संबंधी न निकट के लोग शामिल हुए थे। लोग चोर अथवा लुटेरे थे किन्तु यह बात तथ्य से कोसों से दूर था। वस्तुतः छोटानागपुर का आन्दोलन एक राष्ट्रीय आन्दोलन था, यह एक ऐसा जन विद्रोह था जिसमें सभी प्रकार के लोग जमीन्दार से लेकर गाँव के मुखिया तक आदिवासी, मुसलमान अदि सभी ने भाग लिया। और सभी का एक ही उद्देश्य था यरोपीयन द्वारा शोषण को समाप्त करना और अंग्रेज शासन के सभी चिन्हो को समाप्त करना।
इसलिए यह न केवल सैनिक विद्रोह था और न ही किसी छोटे और असंतुष्ट जनजातीय समूह का उपद्रव। दानापुर के सैनिकों और जगदीशपुर से बाबु कुँवर सिंह के विद्रोह की सूचना पाते ही छोटानागपुर में विद्रोह प्रारम्भ हो गया। छोटानागपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीयों का विद्रोह रामगढ़ से चला जिसका मुख्यालय डोरण्डा राँची था। शीघ्र विद्रोह की चिंगारी हजारीबाग, चाईबासा तथा पुरुलिया स्थित सैनिकों के बीच भी फैल गई। कमिश्नर डाल्टन ने सेना के विद्रोह के दबाने का हर संभव प्रयास किया।
छोटानागपुर के नागवंशी महाराजा के कारण बड़कागढ़ के ठाकुर विश्वनाथ शाही ने विद्रोहियों को नेतृत्व प्रदान किया उनके साथ छोटानागपुर के महाराजा के पूर्व दीवान पांडे गणपत राय भी थे ठाकुर विश्वनाथ शाही प्रमुख तथा पांडे गणपत राय सेना प्रधान बनाए गए थे।
रांची के आसपास विद्रोह इतना सफल था कि कुछ दिनों के लिए रांची में ब्रिटिश शासन मानो खत्म हो गया था। सरकारी दफ्तरों एवं स्कूलों पर आक्रमण कर विद्रोहियों ने उनको काफी क्षति पहुंचाई। कोषागार (खजाना ) लूट लिया गया जेल खोलकर कैदियों को छोड़ दिया गया। विदेशी मिशनरी अंग्रेज अधिकारियों के साथ भाग गए सभी चर्च स्कूल खाली हो गए जी.ई.एल. चर्च पर क्रांतिकारियों द्वारा चार गोले फेंके गए जिनमें से चर्च के टावर पर जा लगा।
रांची के विद्रोहियों ने अनुभव किया के बिना बाहरी सहायता के आंदोलन सफल नहीं हो सकता। इधर अंग्रेजों ने विद्रोही सैनिकों और उनके नेताओं के विरूद्ध अपने अभियान को तेज कर दिया था। रामगढ़ सेना के 2 विद्रोही सूबेदार जयमंगल सिंह और नादिर को अली पकड़ लिए गए और उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। ठाकुर विश्वनाथ शाही अभी भी अंग्रेजों के पकड़ से बाहर थे और लोहरदग्गा क्षेत्र में पहुंचकर अंग्रेजों से लड़ने के लिए तैयारी कर रहे थे। 25 दिसंबर को अंग्रेजी सेना ने डोरंडा पर अधिकार कर पूर्ण शांति स्थापित की।
विश्वनाथ दुबे और महेश नारायण शाही के विश्वासघात के कारण पहले ठाकुर विश्वनाथ शाही बाद में पांडे गनपत पकड़े गए। दोनों पर संक्षिप्त सुनवाई के पश्चात उन पर रामगढ़ के विद्रोही सेना को साथ देने, ब्रिटिश सेना का आवागमन पर रोक लगाने, अंग्रेजी सेना के जवानों की बादशाही वेतन देने तथा व्यापारियों को परेशान करने जैसे आरोप लगाकर ठाकुर विश्वनाथ को 16 अप्रैल सन् 1858 ईस्वी को कदम के पेड़ पर फांसी दे दी गई और पांडे गणपत राय को 21 अप्रैल सन् 1858 ईसवी को रांची जिला स्कूल के निकट कदम के वृक्ष पर फांसी दे दी गई।
ब्रिटिश सरकार ने विश्वनाथ शाही की जमींदारी एवं खेती को जप्त कर लिया, पांडे गणपत राय के भैरो की जमीदार भी जब्त कर ली गई। चोरिया के जमींदार भोला सिंह जिसने डोरंडा के विद्रोही सिपाहियों की मदद की थी को गिरफ्तार कर लिया गया तथा एक कमरे में बंद कर भूखा मार डाला गया। ओरमांझी क्षेत्र के टिकैत उमरांव सिंह तथा उनके दीवान शेख भिखारी को विद्रोही गतिविधियों में भाग लेने के कारण चुटुपालू घाटी में फांसी दे दी गई। कुर्बान अली नामक विद्रोही को 14 वर्ष कैद की सजा दी गई,
इस प्रकार जहां एक ओर स्वतंत्रता सेनानियों एवं सहयोगियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की गई वहीं कंपनी सरकार को सहायता पहुंचाने वाले विश्वासघाती एवं देशद्रोही लोगों को अंग्रेजों द्वारा पुरस्कार दिया गया। इनमें छोटानागपुर क्षेत्र के कई राजे जमींदार और शासक भी थे।
जब रांची में पूर्ण शांति हो गई और ब्रिटिश शासन ठीक से चलने लगा और ईसाई मिशनरी रांची लौट आया, सरकार के सहयोग से खुलकर धर्म परिवर्तन का कार्य चलने लगा। ईसाइयों को हर तरह की सुविधा उपलब्ध की जाने लगी, अंग्रेज शासकों ने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई। अंग्रेजों के विरुद्ध पलामू का यह जन आंदोलन जिसमें चेरो खरवार और भोगता सभी मिलकर ब्रिटिश सरकार के विरोध खड़े थे। काफी लंबे समय के बाद जनवरी सन् 1858 ईस्वी के मध्य तक चलती रही। इस क्षेत्र के वीर नीलांबर और पितांबर (nilamber-pitamber) ने काफी संघर्ष किया और अंत में पकड़े गए और उन्हें फांसी दे दी गई।
1857 की क्रांति के योद्धा कौन थे?
यूं तो 10 मई 1857 को मेरठ से शुरू हुए संघर्ष को ही आजादी की पहली लड़ाई माना जाता रहा है, लेकिन इस संघर्ष में बहादुरशाह जफर, तात्या टोपे तथा नाना फड़नवीस जैसे योद्धाओं के साथ यहा के राव राजा तुलाराम व राव गोपालदेव आदि भी शामिल थे।
1857 में क्या हुआ था?
Indian Rebellion of 1857: 10 मई देश के लिए एक ऐतिहासिक दिन है. आज के दिन साल 1857 में उत्तर प्रदेश के मेरठ से आजादी की पहली लड़ाई की शुरुआत हुई थी. इस दिन कुछ भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था. अंग्रेजों पर हमला कर इस दिन भारतीय सैनिकों ने मेरठ पर कब्जा किया था
झारखंड में संथाल विद्रोह कब हुआ था?
कारण संथाल हूल या 1855 का विद्रोह हुआ
1857 का विद्रोह क्यों शुरू हुआ?
1857 का विद्रोह मुख्यतः उत्तरी और मध्य भारत तक ही सीमित था। वर्षों से भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की विस्तारवादी नीतियों, प्रशासनिक नवाचारों और आर्थिक शोषण के परिणामस्वरूप भारत के लोगों में असंतोष पैदा हुआ। यही असंतोष 1857 के विद्रोह के कारण (Causes Of Revolt Of 1857 in Hindi) के तौर पर माना जाता है।
1857 की क्रांति सर्वप्रथम कहाँ हुई?
1857 की क्रांति ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक अहम और बड़ी घटना थी। जानकारी के लिए बता दे की 1857 की क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुई थी, जो कि धीरे-धीरे कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गई।
1857 का तत्कालीन कारण क्या था?
1857 के विद्रोह के तात्कालिक कारण सैनिक थे। एक अफवाह यह फैल गई कि नई ‘एनफिल्ड’ राइफलों के कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है। सिपाहियों को इन राइफलों को लोड करने से पहले कारतूस को मुँह से खोलना पड़ता था। हिंदू और मुस्लिम दोनों सिपाहियों ने उनका इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया।
1857 में भारत में कौन सी महान घटना घटी थी?
आज़ादी की पहली लड़ाई यानी साल 1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है. इस संघर्ष के साथ ही भारत में मध्यकालीन दौर का अंत और नए युग की शुरुआत हुई, जिसे आधुनिक काल कहा गया
1857 में सबसे अच्छा नेता कौन था?
1857 के विद्रोह के सबसे महत्वपूर्ण नेता रानी लक्ष्मी बाई, बहादुर शाह जफर और मंगल पांडे थे। नाना साहब, तांतिया टोपे, मान सिंह और कुंवर सिंह सहित कई अन्य उल्लेखनीय स्वतंत्रता सेनानियों ने विद्रोह का नेतृत्व करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1857 के विद्रोह के परिणाम क्या थे? 1857 के विद्रोह का प्रभाव
प्रमुख प्रभाव भारत सरकार अधिनियम, 1858 की शुरूआत थी, जिसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया और ब्रिटिश राज की शुरुआत को चिह्नित किया जिसने प्रतिनिधियों के माध्यम से सीधे भारत पर शासन करने के लिए ब्रिटिश सरकार के हाथों में शक्तियां प्रदान कीं।
संथाल की लड़ाई का नेतृत्व किसने किया था?
30 जून 1855 को, 1857 के महान विद्रोह से दो साल पहले, दो संथाल भाइयों सिद्धू और कान्हू मुर्मू ने 10,000 संथालों को संगठित किया और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की घोषणा की। आदिवासियों ने अंग्रेजों को अपनी मातृभूमि से भगाने की शपथ ली।
31 मई 1857 में क्या हुआ था?
31 मई, 1857 को फौजी विद्रोह का दिन तय किया गया था। यह संदेश गुप्त रूप से फौजियों और उन लोगों को पास कर दिया गया, जो जन सामान्य की अगुवाई लिए दम भर रहे थे।