Categories: Jhar History

संथाल विद्रोह के कारण एवं परिणाम

1855-56 ई. के संथाल हूल के कारण, स्वरूप एवं परिणामों की विवेचना करें Discuse the causes, nature and effects of the Santhal

संथाल विद्रोह के प्रमुख कारण क्या था?, संथाल विद्रोह के संस्थापक कौन थे? संथाल विद्रोह की शुरुआत कब हुई थी?

संथाल विद्रोह के प्रमुख कारण क्या था? संथाल विद्रोह के कारण क्या थे उनकी गति और उसके परिणाम क्या थे? संथाल विद्रोह 1855 56 के नेता कौन थे?

सन् 1757 और 1857 के मध्य अंग्रेजों के विरुद्ध भारत में अनेक विद्रोह हुऐ, जिनमें कतिपय विद्रोह आदिवासियों द्वारा ही किये गये थे। ब्रिटिश शासन काल में कम्पनी सरकार की नीति एवं उनके कार्यो के फलस्वरूप आदिवासियों का समाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्हे घोर शोषण का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप आदिवासियों में आक्रोश उत्पन्न हो गया और मृल रूप से सरकार को दोषी मानकर उन्होने उसके विरुद्ध विद्रोह किये जिनमें संथाल, कोल, रंपा और बिरसा मुंडा विद्रोह प्रमख थे।

1855-56 का संथाल विद्रोह अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन की एक महत्त्वपृर्ण कड़ी थी।

संथाल विद्रोह के अनेक कारण थे जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं-

(1) संथाल विद्रोह का पहला कारण गैर आदिवासियों द्वारा उनका आर्थिक शोषण था, संथाल क्षेत्र में बड़ी तेजी से बंगाली एवं पछाही महाजन एवं साहुकारों का प्रवेश हआ। क्योंकि संथालों के साथ व्यापार करने एवं मुनाफा कमाने का यह बहुत अच्छा अवसर था। कुछ ही दिनों के अन्दर ये महाजन एवं साहूकार संथालों का शोषण कर काफी अमीर बन गए। इन महाजनों ने ब्याज की बहुत ऊँची दर लगभग 50 से 500% पर गरीब एवं निर्धन संथालों को कर्ज दिया करते थे और उन्हें कठोरतापूर्वक वसूल भी किया करते थे। एक बार महाजन के चंगुल में फँसने के बाद संथालों के खेत, अनाज और पशुधन तथा कभी-कभी स्वयं परिवार के सदस्यों पर महाजन का प्रभुत्व स्थापित हो जाता था और उन्ही महाजनों के अधीन गुलामों सा जीवन गुजर बसर करना पड़ता था।

संथालों ने अपनी गरीबी एवं विपन्नता लिए महाजिनो को जिम्मेवार ठहराया। संथालों की दृष्टि में ये महाजन झूठे मक्कार एवं
अत्याचारी थे। इन महाजनों ने संथालों को गुलाम, शराबी, झूठा और चोर बना दिया।

(2) संथालों के आक्रोश का इसका हत्तवपर्ण काल यह था कि अंग्रेज सरकार के नियम कानून, अदालतें और सरकारी अधिकारियों का रवैया संथाल विरोधी एवं महाजनों के पक्ष में था। सरकारी कमचारियों एवं अधिकारियों ने सदा ही महाजनों का साथ दिया। सरकारी कर्मचारीयों के अत्याचार एवं अन्याय से आदिवासी अत्यंत नाखुश थे। बड़े परिश्रम से जंगलों का साफ करके संतालों ने कृषि करने के लिए भूमि तैयार किया और जब खेती करने लगे तो सरकार ने इन पर लगान दिया गया। अब जमींदारों एवं सरकारी कर्मचारियों द्वारा आदिवासियों पर शोषण का दौर शुरू हो जाता है। ऊँची लगान चुकाने में किसान असमर्थ हो जाते हैं और अन्त में महाजन के जाल में फंस जाते थे।

सरकारी नीति एवं महाजनों के जाल में फंसे संथाल धीरे-धीरे अपनी भूमि एवं जंगलों से वंचित हो रहे थे। जमींदार उनकी भमि पर कब्जा जमाने के लिए उतावले थे। उसने भेंट, नजराना आदि देकर सरकारी कर्मचारियों को अपने पक्ष में कर लिया। पैसे के लालच आकर जमींदारों ने जंगल काटने और लकड़ी आदि बेचने का ठीका बाहरी ठेकेदारों को दे दिया। सरकार एवं जमीदारों की इस स्वार्थी आर्थिक नीति ने संथालों को अत्यंत गरीब बना दिया। स्थानीय पुलिस एवं सरकारी अदालत से निराश संथालों के समक्ष हथियार उठाने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं था।

रेलवे अधिकारियों ने दी अत्यंत निर्दयता एवं निर्जलातापूर्वक इन संथालों पर बहुत शोषण किया। रेलवे के अंग्रेज ठेकेदारों ने रेलवे लाइन के निर्माण के लिए संथालों का इस्तेमाल अत्यंत कठोरता पूर्वक किया। और तो और उस काम के लिए उन्हें पारिश्रमिक यानि मेहताना/वेतन तक नही के बराबर दिया, काम छोड़कर भागने की स्थिति में उन पर कोड़े बरसाए गए उनको पीटा गया। उनकी स्त्रियों के साथ शारीरिक शोषण तो आम बात हो गई थी, जिसके बाद से परिस्थितियां और भी बदल गई और संथालो के सब्र का प्याला अब छलकने ही वाला था।

ब्रिटिश दीवानी अदालत के संथाल विरोधी नियम एवं कानून तथा न्याय की तलाश में संथालो द्वारा कभी भागलपुर तो कभी देवघर की खाक छानना, संथाल अब सहन करने को तैयार नही थे। खर्चीला न्याय और घूसखोर सरकारी कर्मचारियों ने संथालों के कष्टों को और भी बढ़ा दिया। इस प्रकार सरकारी कर्मचारी, पुलिस, थानेदार, राजस्व पदाधिकारी, महाजन, साहूकार और जमींदार सभी मिलकर गरीब संथालों को लूट रहे थे, सशस्त्र विद्रोही एकमात्र रास्ता था।

विद्रोह का स्वरूप– उपर्युक्त अनेकानेक कारणों से संथालों ने विद्रोह शुरू कर दिया, इस विद्रोह का नेतृत्व सिध्दू एवं कान्हू कर रहे थे। संथाल़ न्याय एवं धर्म का राज्य स्थापित करना चाहते थे, चांद एवं भैरव दो भाई इस अंग्रेज विरोधी आंदोलन के प्राण थे। 13 जून सन् 1855 ईस्वी को सिध्दू एवं कान्हू ने भगनाडीह नामक गांव में संथालों की एक सभा का आयोजन किया जिसमें लगभग 10,000 संथालों ने भाग लिया। इस सभा में अंग्रेज विरोधी जुलूस निकाले गए। पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी इस विद्रोह में बढ़-चढ़कर भाग लिया। कुछ ही दिनों के अंदर सिध्दू – कान्हू के नेतृत्व में 60,000 सशस्त्र संथालो की एक बड़ी फौज खड़ी हो गई।

इसके अतिरिक्त हजारों आदिवासी अंग्रेजों का तख्ता उलटने के लिए तैयार थे, इस विद्रोह की आग शीघ्र ही वीरभूम, बांकुरा, सिंहभूम, हजारीबाग, भागलपुर, मुंगेर आदि कई स्थानों में फैल गई। महाजनों एवं जमीदारों पर हमले किए गए और उनके मकान जला दिए गए, तथा उन्हें लूट लिया गया। ‌पांच महाजनों को संथाल विद्रोहियों ने पंचकठिया में मार डाला। सरकारी भवनों, थाना, रेलवे स्टेशन और डाक ढोनेवाली गाड़ियों पर हमले किए गए। संथालो के आक्रमण के केंद्र वे सभी गैर आदिवासी तत्व थे जिनसे वे क्षुब्ध थे।

इस संगठित विद्रोह एवं सरकारी भवनों, कर्मचारियों एवं अन्यान्य सरकारी सम्पति पर संथालियों के आक्रमण ने सरकार को जवाबी कार्यवाही के लिए उकसाया। सरकार ने अत्यन्त कटोरतापूर्वंक इस विद्रोह का दमन करने का निश्चय किया और सेना की एक बड़ी टुकड़ी रवाना की। विद्रोह प्रभावित सारे क्षेत्र में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया। सिध्दू-कान्हू जैसे विद्रोही नेताओं को पकड़ने के लिए सरकार ने दस हजार रुपये इनाम की घोषणा की। सिध्दू और कान्हू पकड़े गये और विद्रोह को अत्यन्त कठोरतापूर्वक दबा दिया गया। करीब 15 हजार संथाल मारे गये, अंग्रेजी बन्दूकों के समक्ष संथालों का तीर- धनष बेकार सिद्ध हुआ विद्रोह समाप्त हो गया और शान्ति स्थापित हो गयी।

परिणाम : इस प्रकार संथाल विद्रोह को दबाने में सरकार सफल रही, किन्तु इस घटना ने महीनों सरकार की नींद उड़ा दी थी। यद्यपि इस विद्रोह की अवधि मात्र दो सौ दिनों की ही रही किन्तु इसने ब्रिटेश सरकार को हिला कर रख दिया था। अतः इसे महत्त्वहीन स्थानीय घटना कहकर नहीं टाला जा सकता था। लगभग 6 महीने तक ब्रिटिश सरकार, जमींदार एवं विद्रोह प्रभावित क्षेत्र के लोगों के लिए यह एक भयानक स्वप्न जैसा था। ब्रिटिश सरकार को धन-जन की अपार क्षति उठानी पड़ी थी।

सरकार के राजस्व को इसने बुरी तरह प्रभावित किया था, लेकिन कभी-कभी बुराई में से भी अच्छाई निकल आती है। इस विद्रोह के दूरगामी परिणाम कुछ सुखद, निकले। जैसा कि इतिहासकार K. K. Dutta ने अपनी पुस्तक Santhal lnsurrection में लिखा है – इस घटना ने बंगाल एवं बिहार के इतिहास में एक नये अध्याय का प्रारंभ हुआ। इसने सरकार को यह जताया कि सम्पूर्ण संथाल क्षेत्र को प्रभावशाली प्रशासकीय नियंत्रण के अधीन रखना आवश्यक है। बंगाल के पश्चिम में स्थित (राजमहल क्षेत्र) संथालों की उपेक्षा बंगाल का शासक सुरक्षा की दृष्टि से नहीं कर सकता था। अत: संथालों के कष्टों और उनके आक्रोश के कारणों को सही तरीके से एवं निष्पक्ष जाँच की गई।

उनके कष्टों को दर करने और उन्हें प्रशासनिक सुविधाऐं प्रदान
करने के लिए संथाल परगना नामक एक अलग जिला का निर्माण किया गया। संथालों की खराब आर्थिक स्थिति की ओर सरकार का ध्यान गया और इस दिशा में सरकार द्वारा कुछ प्रयत्न किये गए। उन्हें साहूकारों एवं महाजनों के शोषण से भी बचाने के कुछ प्रयास किए गए। नाप-तौल के बँंटखरों पर-सरकारी निरयंत्रण एवं नये नियमों की घोषणा से यह स्पष्ट है । विद्रोह प्रभावित क्षेत्र में संचार के साधनों के सूगम बनाने का भी प्रयास किया गया।

एक उल्लेखनीय एवं अति महत्त्वपृर्ण परिणाम इस विद्रोह का यह निकला कि इसाई‌ मिशिनिरियों का ध्यान इस उपेक्षित एवं निर्धन क्षेत्र की ओर गया। मिशिनरियों को बंगाल एवं बिहार
के शहरी क्षेत्र में निवास करने वाले सभ्य हिन्दओं की अपेक्षा निर्धन एवं पिछड़े संथालों के बीच अपने धमे का प्रचार एवं प्रसार अपेक्षा कृत आसान लगा। अतः इसके बाद से छोटानागपुर एवं इससे सटे बंगाल के पहाड़ी क्षेत्र विदेशी इसाई मिशिनरियों से भर गये।

Anshuman Choudhary

Share
Published by
Anshuman Choudhary

Recent Posts

गुरु नानक जयंती: एक प्रेरणादायक पर्व झरिया में कैसे मनाया जाता है

गुरु नानक जयंती नवंबर में क्यों मनाई जाती है? भारतीय समाज में धार्मिक त्योहारों का…

5 months ago

The Importance of International Health Insurance : Ensuring Global Well-being

International Health Insurance In an increasingly interconnected world, where people frequently travel abroad for work,…

11 months ago

भौंरा क्षेत्र में अवैध तरीके से कोयला निकालने के दौरान 6 लोगों की मौत

आउटसोर्सिंग प्रोजेक्ट में अवैध चाल धंसने से 9 लोग दब गए 6 लोग कि मृत्यु…

11 months ago

The Demonetization of 2000 Rupee Notes in India: An Unprecedented Move

2000 Rupee Notes ban india? On November 8, 2016, the Government of India took the…

12 months ago

Holi Festival: Celebrating Spring, Good over Evil, and the Colors of Life

Colors of Spring: Exploring the Significance and Celebration of Holi Festival Holi is a vibrant…

1 year ago

झारखण्ड बजट 2022–23 | Jharkhand Budget 2022–23 in hindi

झारखण्ड बजट 2022–23 मुख्य विशेषताएं झारखण्ड बजट 2022–23 (Jharkhand Budget 2022–23) - वित्तीय वर्ष 2021…

1 year ago